Saturday 28 July 2012

आम सभा की 26 जुलाई की बैठक का कार्यवृत्‍त



केन्‍द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा अनुवादक एसोसिएशन
CENTRAL SECRETARIAT OFFICIAL LANGUAGE SERVICE
TRANSLATORS’ ASSOCIATION
कमरा सं. 203, नॉर्थ ब्‍लॉक, नई दिल्‍ली - 110001
दूरभाष : 011-23092016 Ext.- 331/257

पत्र क्रमांक: सीएसओएलएसटीए/4/1/2012       दिनांक: 27 जुलाई, 2012 

विषय : दिनांक 26 जुलाई, 2012 को सम्‍पन्‍न हुई केंद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा अनुवादक एसोसिएशन की आम सभा की बैठक का कार्यवृत्त । 

केंद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा अनुवादक एसोसिएशन की आम सभा की बैठक श्री दिनेश कुमार सिंह की अध्‍यक्षता में दिनांक 26.07.2012 को अपराह्न 1.00 बजे बोट क्लब पुलिस पोस्ट के निकट आयोजित की गई । दिनांक 17.07.2012 के बाद एसोसिएशन का चुनाव संपन्न होने के पश्चात नई कार्यकारिणी के तत्वावधान में यह एसोसिएशन की पहली बैठक थी। बैठक संचालन करते हुए एसोसिएशन के नव-निर्वाचित संयुक्त सचिव, श्री सौरभ आर्य ने उपस्थित सदस्यों का अभिवादन किया और बैठक में उनकी भागीदारी हेतु धन्यवाद व्‍यक्‍त किया । श्री आर्य ने एसोसिएशन के पूर्व पदाधिकारियों को भी बैठक में उपस्थित होने का निमंत्रण स्वीकार करने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने निर्वाचन और उसके पश्चात के कुछ घटनाक्रमो की जानकारी देने के लिए नवनिर्वाचित महासचिव, श्री अजय कुमार झा से सभा को संबोधित करने का आग्रह किया ।

श्री अजय कुमार झा ने चुनाव परिणाम की जानकारी देते हुए सभा को बताया कि दिनांक 17.07.2012 को एसोसिएशन के चुनाव संपन्‍न हुए एवं निर्वाचन अधिकारी श्री सत्‍यपाल के द्वारा घोषित चुनाव परिणाम के अनुसार संयुक्‍त सचिव के दो पदों के लिए हुए मतदान में कुल 301 मतदाताओं ने अपने मतदान के अधिकार का प्रयोग किया जिसमें श्री सौरभ आर्य को 263, श्री पांडेय राकेश श्रीवास्‍तव को 258 एवं श्री प्रेमचंद यादव को 63 मत प्राप्‍त हुए। शेष 20 पदों पर सभी उम्‍मीदवार निर्विरोध रूप से चुने गए।

श्री झा ने बैठक की कार्यवाही को आगे बढ़ाते हुए राजभाषा सेवा संवर्ग के समक्ष वर्तमान की ज्‍वलंत समस्‍याओं पर एसोसिएशन के पूर्व अध्‍यक्ष श्री शिव कुमार गौड़ से अद्यतन स्थिति से आम सभा के सदस्‍यों को अवगत कराने का निवेदन किया । 

श्री शिव कुमार गौड़, ने सभा को संबोधित करते हुए नव-निर्वाचित पदाधिकारियों और कार्यकारिणी को बधाई और शुभकामनाएं दीं तथा भविष्‍य में अपनी और अपने सहयोगियों की ओर से पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया । श्री गौड़ ने सभा में उपस्थि‍त लोगों के मध्‍य पिछले कुछ दिनों से सहायक निदेशकों (रा.भा.) के पदों पर सीधी भर्ती एवं उसके परिणाम स्‍वरूप कुछ तदर्थ सहायक निदेशकों के रिवर्ट होने की संभावना के संबंध में अपुष्‍ट सूत्रों से मिल रही सूचना पर अद्यतन स्थिति को स्‍पष्‍ट करते हुए बताया कि पूर्वएसोसिएशन के पदाधिकारियों ने पिछले कई वर्षों से येन-केन प्रकारेण सीधी भर्ती को रुकवा रखा था ताकि अवरुद्ध राजभाषा कैडर में कम से कम तदर्थ पदोन्‍नतियां तो हो सकें। उन्‍होंने कहा कि अब जब यह मुद्दा सतह पर आ ही गया है तो इसका सामना करने की आवश्‍यकता है ।

इसके अतिरिक्‍त उन्‍होंने 1986 वाले केस के विषय में बताया कि इस केस में दिनांक 25.07.2012 को कैट में तारीख पर सुनवाई के दौरान माननीय न्‍यायालय ने इस विषय में अगली तारीख 11 सितंबर तय की है । श्री गौड़ ने बताया कि इस मामले में एसोसिएशन के पूर्व पदाधिकारी लंबे समय से लड़ाई लड़ते आ रहे हैं और यह मामला अप्रत्‍यक्ष रूप से कनिष्‍ठ अनुवादकों के भी हित में है ।

श्री गौड़ ने कहा कि एसोसिएशन के फंड में लगभग 1,40,000/- रू. हैं और सभी खर्चों के बाद नए पदाधिकारियों को 1,20,000/-  से 1,25,000/- रू. हस्तांतरित किये जाएंगे ।


तदोपरांत मंच संचालक श्री सौरभ आर्य ने श्री अजय कुमार झा को चुनाव के बाद से अब तक नई एसोसिएशन द्वारा की गई पहलों से अवगत कराने का अनुरोध किया । जिस पर श्री झा ने सभा को सूचित किया कि चुनाव परिणाम की घोषणा के क्षण से ही नई एसोसिएशन के पदाधिकारी कनिष्‍ठ अनुवादकों के पदोन्‍नति आदेशों को जारी करवाने के प्रयासों में जुट गए थे । यहां तक कि चुनाव से पूर्व ही हमारी टीम ने कड़ी मेहनत कर लगभग सभी अनुवादकों की ई. आर. शीट राजभाषा विभाग में पहुंचना सुनिश्चित कर दिया था। परंतु चुनाव उपरांत जब हमने  राजभाषा विभाग से संपर्क कर इस विषय में त्‍वरित कार्रवाई किए जाने का अनुरोध किया तो  विभाग के कुछ अधिकारियों ने इस संबंध में कुछ कनिष्‍ठ अनुवादकों के सतर्कता निकासी और छोटी-बड़ी शास्ति की रिपोर्ट भी पदोन्‍नति पूर्व प्राप्‍त होना आवश्‍यक शर्त बताई । श्री झा ने बताया कि फिलहाल कुछ कनिष्‍ठ अनुवादकों की एक सूची विभाग ने एसोसिएशन के पदाधिकारियों को उपलब्‍ध कराई है जिस पर कार्य किया जा रहा है और आशा की जानी चाहिए कि शीघ्र ही कनिष्‍ठ अनुवादकों के पदो‍न्‍नति आदेश जारी हो जाएंगे । श्री झा ने यह भी रेखांकित किया कि नई एसोसिएशन अनुवादकों के हितों के लिए जी जान से कार्य करेगी और इस पूरे संवर्ग के सुनहरे भविष्‍य के लिए कटिबद्ध रहेगी ।

इस बैठक में सभी सदस्‍यों से लिखित रूप से सुझाव/ महत्‍वपूर्ण मुद्दे भी आमंत्रित किए गए थे जिन्‍हें संयुक्‍त सचिव, श्री पांडेय राकेश श्रीवास्‍तव द्वारा स्‍वीकार किया गया एवं अध्‍यक्ष श्री दिनेश कुमार सिंह के निदेश पर जो सदस्‍य अभी तक अपने सुझाव प्रस्‍तुत नहीं कर सके हैं उन्‍हें अपने सुझाव एसोसिएशन तक पहुंचाने के लिए कुछ और समय दिए जाने की भी घोषणा की गई । यदि कोई भी सदस्‍य अपना सुझाव एसोसिएशन तक भेजना चाहता है तो वह लिखित रूप में एसो‍सिएशन के किसी भी पदाधिकारी के पास अथवा एसोसिएशन की ई-मेल आई डी translatorsofcsols@yahoo.in पर दिनांक 2 अगस्‍त, 2012 तक भेज सकते हैं । इस तिथि तक प्राप्‍त सभी सुझावों पर कार्यकारिणी की बैठक में विचार कर मुद्दों की प्राथमिकताएं तय की जाएंगी ।  

बैठक के बीच में बारिश शुरू हो जाने के कारण बैठक की कार्यवाही को संक्षिप्‍त करना पड़ा और समस्‍त नवनिर्वाचित पदाधिकारियों एवं कार्यकारिणी के सदस्‍यों से सभा का परिचय नहीं कराया जा सका । इसके लिए संयुक्‍त सचिव, श्री सौरभ आर्य  ने सभा को आश्‍वासन दिया कि दो-तीन दिनों के अंदर ही सभी पदाधिकारियों एवं कार्यकारिणी के सदस्‍यों का सचित्र परिचय एसोसिएशन के ब्‍लॉग translatorsofcsols.blogspot.in पर उपलब्‍ध करा दिया जाएगा । साथ ही उन्‍होंने सभा को सूचित किया कि अब से सभी प्रकार के संवाद और सूचना के प्रसारित किए जाने के लिए यह ब्‍लॉग ही एसोसिएशन का आधिकारिक माध्‍यम रहेगा । इसलिए सभी सदस्‍य निरंतर ब्‍लॉग से  जुडे रहें ।

अंत में, श्री दिनेश कुमार सिंह, अध्यक्ष ने अपने संबोधन में सभी सदस्यों को सभा में उपस्थित होने के लिए धन्यवाद दिया । उन्होंने सभा को संवर्ग के हित में सक्रिय रूप से कार्य करने का आश्वासन दिया और सभी सदस्यों से सहयोग मांगा । उन्होंने सफलतापूर्वक निर्वाचन प्रक्रिया पूर्ण होने पर हर्ष व्यक्त करते हुए सभी सदस्यों के मध्य मिष्ठान का वितरण भी करवाया.

अंत में अध्‍यक्ष महोदय के प्रति धन्‍यवाद ज्ञापन के साथ बैठक की कार्रवाई समाप्‍त की गई ।

हस्‍ता /-
(दिनेश कुमार सिंह)
अध्‍यक्ष
सेवा में,
      केन्‍द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा अनुवादक एसोसिएशन के सभी सदस्‍य । 


बैठक की झलकियां :


Wednesday 25 July 2012

आम सभा की बैठक हेतु परिपत्र एवं संदेश

प्रिय मित्रो,
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि कल 26 जुलाई को नवगठित एसोसिएशन की आम सभा की पहली बैठक होने जा रही है. इस संबंध में श्री दिनेश कुमार सिंह, अध्‍यक्ष, केन्‍द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा अनुवादक एसोसिएशन द्वारा जारी एक परिपत्र की प्रति सभी साथियों के ध्‍यानार्थ यहां प्रस्‍तुत की जा रही है.

इसी क्रम में हम यह कहना चाहेंगे कि क्‍योंकि यह नई एसोसिएशन के गठन के उपरांत पहली बैठक है हमें इसी बैठक से एक नई कार्य संस्‍कृति का सूत्रपात करना है जिसमें हो-हल्‍ला और अराजकता का कोई स्‍थान न हो. इसके लिए व्‍यवस्‍था की गई है कि बैठक के पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार ही सभी गतिविधियां सम्‍पन्‍न होंगी तथा जो  साथी कोई भी सुझाव रखना चाहते हैं उन्‍हें लिखित रूप में अध्‍यक्ष या अध्‍यक्ष द्वारा नियुक्त किसी पदाधिकारी को बैठक स्‍थल पर ही सौंप दें ताकि बैठक का कीमती समय जाया न हो और आपके सुझावों पर बैठक के उपरांत कार्यसमिति द्वारा ठीक प्रकार से कार्य किया जा सके. यदि फिर भी आप कोई महत्‍वपूर्ण बात कहना आवश्‍यक समझें तो बैठक की मर्यादा के अनुरूप अध्‍यक्ष महोदय से अनुमति लेकर से ही अपनी बात रखें. यह बड़े ही प्रब़द्ध लोगों का संवर्ग है और हमें अपने शैक्षिक एवं बौद्धिक  स्‍तर के अनुरूप ही अपनी गतिविधियों को संपन्‍न करना है. हमें विश्‍वास है कि सभी साथी इस बैठक को पूर्णतया शांतिपूर्ण ढंग से संपन्‍न करने में हमारा सहयोग करेंगे और इस बैठक को सफल बनाएंगे. 
आप सभी सादर आमंत्रित हैं. 


Copy of result declared by Election Officer Sh. Satyapal.

Dear Friends,
As we all know that Central Secretariat Official Language Service Translators' Association's Election was held on 17th July, 2012 in Udyog Bhawan. The copy of Result declared by Election Officer Sh. Satyapal is being uploaded here for information. This result contains names of all office bearers and Members of Executive Committee. 

कार्यकारिणी की एक बैठक के उपरांत एसोसिएशन के समस्‍त पदाधिकारी 


Copy of result declared by Election Officer Sh. Satyapal. 

Friday 20 July 2012

अभी जश्‍न का वक्‍त नहीं है.......और काम जारी है.


 17 तारीख को चुनाव परिणाम की घोषणा निश्चित ही सेलीब्रेट करने का विषय था. दूसरे पूरी टीम के सदस्‍य दो महीने की लगातार भाग-दौड के बाद थकान महसूस कर रहे थे. परंतु हमारे समक्ष जो चुनौतियों खड़ी हैं उन्‍हें देखते हुए आराम अब हमारे लिए हराम था. लिहाजा 18 तारीख की दोपहर को ही पूरी कार्यकारिणी की बैठक बुलाई गई. इस बैठक में आगामी कुछ दिनों में किए जाने वाले कार्यों को सूचीबद्ध किया गया. तब से लेकर अब तक समिति के कुछ सदस्‍य नियमि‍त रूप से बैठक कर रहे हैं. इसी क्रम में जब नए पदाधिकारी पदभार ग्रहण करने के उपरांत दिनांक 19.07.12 को राजभाषा विभाग के अधिकारियों से शिष्‍टाचारवश उनसे पहली बार भेंट करने पहुंचे तो राजभाषा विभाग के अधिकारियों ने हमें आश्‍वासन दिया कि राजभाषा विभाग केंद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा अनुवादक एसोसिएशन के नए पदाधिकारियों को प्रत्‍येक आवश्‍यक मौके पर हर संभव सहायता उपलब्‍ध कराएगा.

एसोसिएशन के नए पदाधिकारियों की राजभाषा विभाग के संबंधित अधिकारियों से कुछ मौजूदा महत्‍वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा भी हुई. एसोसिएशन के आग्रह पर विभाग के अधिकारियों ने बताया कि लगभग 60 अनुवादकों की छोटी बड़ी शास्तियां विभाग में नहीं पहुंची है जिस वजह से कनिष्‍ठ अनुवादक से वरिष्‍ठ अनुवादक ग्रेड में पदोन्‍नति पर कार्रवाई अबतक नहीं की गई है. एसोसिएशन ने ऐसे सभी शेष अनुवादकों की सूची प्राप्‍त कर ली है और विभाग के अधिकारियों को यह आश्‍वासन दिया कि युद्ध स्‍तर पर काम करते हुए इन अनुवादकों से छोटी बड़ी शास्तियां प्राप्‍त कर विभाग को उपलब्‍ध करा दी जाएंगी. 

एसोसिएशन ने विभाग के अधिकारियों को यह बताया कि पदोन्‍नति का इंतजार लंबे समय से करते हुए अनुवादकों में अब हतोत्‍साह का वातावरण बन रहा है, अत: विभाग को अवश्‍य ही शीघ्र कार्रवाई करनी चाहिए. विभाग के पदाधिकारियों ने यह भी आश्‍वासन दिया है कि जिन अनुवादकों के अपेक्षित कागजात पहुंच गए हैं उन्‍हें शीघ्र पदोन्‍नति प्रदान करने के सभी विकल्‍पों पर अवश्‍य विचार किया जाएगा.

एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने यह संदेश भी संप्रषित कर दिया है कि यह एसोसिएशन किसी भी सूरत में तदर्थ सहायक निदेशकों को रिवर्ट किए जाने का विरोध करेगा. 

Tuesday 17 July 2012

अपार, अभूतपूर्व और असाधारण ......लोकतंत्र की भारी जीत.

आखिरकार 15 वर्षों बाद लोकतंत्र का महापर्व संपन्‍न हुआ. कैडर के भारी समर्थन से अंतत: हमारी टीम का विजय ध्‍वज लहराया. इस अपार नैतिक समर्थन के लिए हम कैडर के सभी साथियों का हृदय से आभार व्‍यक्‍त करते हैं. आज 300 से अधिक मतदाताओं का मात्र दो पदों के लिए हो रहे मतदान में आना साफ कर गया कि लोगों के हृदय में परिवर्तन की इच्‍छा बहुत प्रबल है और बुद्धिजीवियों का यह कैडर सही और गलत में भेद करने का विवेक रखता है. पुन: बहुत बहुत धन्‍यवाद.

चुनाव परिणाम की घोषण के उपरांत विजयी
श्री सौरभ आर्य एवं श्री पांडेय राकेश  श्रीवास्‍तव


चुनाव परिणाम :


कुल वैध मत                    : 301
श्री सौरभ आर्य                 : 263
श्री पांडेय राकेश श्रीवास्‍तव  : 258
श्री प्रेमचंद यादव               : 63










आगामी 26 जुलाई (गुरूवार) को नई एसोसिएशन की एक परिचय बैठक (आम सभा) बोट क्‍लब पर दोपहर 1 बजे आयोजित की जाएगी. सभी अनुवादक साथी एवं तदर्थ सहायक निदेशक (रा.भा.) इस बैठक में आमंत्रित हैं. 




चुनाव परिणाम की घोषणा के उपरांत के कुछ पल 


विजय की घोषणा के बाद दोनों विजयी उम्‍मीदवारों को माल्‍यार्पण कर
बधाई देते एसोसिएशन के पूर्व अध्‍यक्ष श्री शिव कुमार गौड 

मतगणना की प्रक्रिया को संपन्‍न करते चुनाव अधिकारी श्री सत्‍यपाल 

विजय के उपरांत प्रसन्‍नता को सांझा करते टीम के सदस्‍य
विजय के उपरांत प्रसन्‍नता को सांझा करते टीम के सदस्‍य

महज हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं....


महज हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

Saurabh Arya, Jr Translator,
Ministry of Textiles.
आखिरकार आज 17 जुलाई की तारीख राजभाषा सेवा संवर्ग के इतिहास में लोकतंत्र की बहाली की तारीख के रूप में याद रखी जाएगी. 17 जुलाई को चुनाव होंगे इसकी घोषणा 6 जून की आम सभा की बैठक में की गई थी. ‘चुनाव होंगे’ इन दो शब्‍दों को अमलीजामा पहनाने में हमें दो दशक लग गए. अनुवादकों के हितों से खिलवाड़ होता रहा और किसी ने अब तक संगठित स्‍वर से सवाल तक नहीं किया. अनुवाद की दुनिया में मुझे आए आज पूरे साढ़े छह साल हो चले हैं. इस दौरान इस दुनिया को बहुत करीब से देखा, जाना और ठीक से पहचानने की कोशिश की. कुरूक्षेत्र, चण्‍डीगढ, लुधियाना और फिर दिल्‍ली के सफर में अनुवाद मेरे जीवन में आयाम बदलता रहा और इस पेशे के प्रति मेरे समझ और बढ़ती गई. हां, ये दूसरी बात थी कि इस दुनियां ने मुझे हर पल पर हैरान किया और ये सोचने पर मजबूर किया कि आखिर ऐसा क्‍या है कि सरकारी तंत्र का सबसे ज्‍यादा शिक्षित तबका इस तंत्र द्वारा बुरी तरह उपेक्षा का शिकार है. दिल्‍ली आने से पहले मन में बडी उम्‍मीद थी कि कैडर के अनुवादकों की स्थिति अवश्‍य ही बेहतर होगी. पर ये वहम दिल्‍ली की जमीन पर कदम रखते ही दूर हो गया. ये जानकर और भी आश्‍चर्य हुआ कि इस कैडर की एक एसोसिएशन है और वह वभी नकारा साबित हो चली है. जब इस एसोसिएशन का इतिहास और कार्यप्रणाली को करीब से समझा तो जाना की एसोसिएशन नाम की कोई चिडि़या वास्‍तव में है ही नहीं.
      दोस्‍तो जो चीज हमारे कैडर की ताकत है शायद वही हमारी सबसे बडी कमजारी भी है. हमारी ताकत है कि अनुवादक का पद एक ऐसा पद है जो आपको हर केन्‍द्रीय कार्यालय में मिल जाएगा. परन्‍तु यही हमारी सबसे कमजोर कडी है क्‍योंकि हर कार्यालय में अमूमन दो चार अनुवादक मौजूद होते हैं और एक कैडर का हिस्‍सा होने के बावजूद आपस में संवाद और विमर्श का कोई माध्‍यम उपलब्‍ध न होने के कारण बुरी तरह बिखरे हुए हैं. एसोसिएशन को संभवतया इस दिशा में कार्य करना चाहिए था पर नहीं हुआ. यहां तक कि आम सभा की बैठकें भी नियमित रूप से नहीं बुलाई गईं. अन्‍य किसी माध्‍यम से सूचनाओं को प्रसारित करने की तो बात ही छोड़ दिजिए.
पिछले वर्ष जगन्‍नाथ पुरी (उड़ीसा) में केन्‍द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा अनुवादक एसोएिशन के वर्तमान अध्‍यक्ष श्री शिव कुमार गौड़ से मेरी पहली मुलाकात हुई और इस स्थिति को दूर करने के उपायों पर पुरी से कोणार्क के रास्‍ते में मेरी उनसे लंबी चर्चा हुई. मैंने महसूस किया कि वे दिल से तो चाहते हैं कि कुछ ऐसा हो परंतु शायद चाह कर भी नहीं पा रहे हैं. बस उसी दिन से मैंने विकल्‍प तलाशने शुरू किए. इस दौरान इस निराशा के दौर में मुझे आशा की बड़ी शक्तिशाली किरणें नज़र आनी शुरू हो गईं. अपने मित्रों से आपस में इन मुद्दों पर चर्चा के दौरान मैंने पाया कि कुछ और साथी भी इसी फ्रीक्‍वेंसी पर सोचते हैं. वित्‍त मंत्रालय से श्रीमती विशाखा बिष्‍ट भी संभवत: इस स्थिति को पहचान चुकी थीं और हालातों को बदलने की तीव्र इच्‍छा उनके भी दिल में थी. बस फिर क्‍या था फेसबुक पर ट्रांसलेटर्स क्‍लब नाम से कम्‍यूनिटी बना कर हम दोनों ने देश भर के अनुवादकों को एक मंच पर लाने का प्रयास शुरू कर दिया. और अब तक 150 के करीब अुनवादक इस मंच से जुड़ चुके हैं. अनुवादकों के मध्‍य आपस में एक दोस्‍ताना माहौल बने जहां वे खुलकर अपने दिल की बात अपने साथियों के साथ सांझा कर सकें इसके लिए सभी अनुवादकों को एक दिन के दिल्‍ली दर्शन और फिर इस वर्ष मार्च माह में विश्‍व पुस्‍तक मेले में आमंत्रित किया गया. इन दोनों आयोजनों में अनुवादक साथियों ने बड़े उत्‍साह से भाग लिया. ये उपाय बड़ा कारगर साबित होता दिख रहा था. ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों स्‍तरों पर उत्‍साह दिनों दिन बढ़ने लगा. फिर हमने तय किया कि यह प्रयोग अपने कैडर में भी किया जाए.
     इससे पहले कि हम इस दिशा में कार्य शुरू करते. 9 मई को कुछ अनुवादक साथी नॉर्थ ब्‍लॉक में चाय पर मिले. इन्‍हें बुलाने का श्रेय भी श्रीमती विशाखा बिष्‍ट को जाता है. इस दिन कुल 12 अनुवादक मौजूद थे. तमाम बातों पर चर्चा हुई सबने पाया कि वर्तमान एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने अब अनुवादकों के हितों के प्रति आंखें मूंद ली हैं. यह स्‍वाभविक था. वरिष्‍ठ पदों पर पदोन्‍नति के उपरांत उनसे यह अपेक्षा करना बेमानी ही था. तय किया गया कि क्‍योंकि अब एसोसिएशन में अनुवादकों का कोई प्रतिनिधित्‍व नहीं रह गया है. लिहाजा जल्‍द से जल्‍द चुनाव कराए जाएं. उसके बाद 23 मई को हुई बैठक और बाद के घटनाक्रम से आप सभी परिचित ही हैं. हमने ज्‍यादा से ज्‍यादा साथियों से चर्चाएं कर सही लोगों की पहचान शुरू की जिस भी एक व्‍यक्ति ने ईमानदारी से कैडर की सेवा करने को भाव दिखाया उसे साथ लेकर हम आगे बढ़ते रहे. और बहुत जल्‍द एक स्‍वस्‍थ टीम तैयार हो गई जिसमें श्री दिनेश कुमार सिंह, श्री अजय कुमार झा, श्री पांडेय राकेश श्रीवास्तव , कुमार राधारमन, श्री अवनी करण, श्रीमती विशाखा बिष्ट, श्री मंजुल, श्री धर्मबीर और श्री सुभाष पंडोरा जैसे जुझारू लोग मजबूत खंभों की भांति है. इनके अतिरिक्‍त तमाम वरिष्‍ठ साथियों ने हमें अपना समर्थन दिया और टीम का हिस्‍सा बने. यह एक निरंतर और पूर्णतया स्‍वाभाविक रूप से बनी टीम थी. सबमें एक बात खास थी कि सब से सब पूरी तरह आशावादी और परिवर्तन के प्रति निष्‍ठावान थे. बस फिर देर किस बात की थी. हमने कैडर के सभी साथियों को एक सूत्र में पिरोने को अपनी प्राथमिकता बनाया. जिसके लिए हमने एक एक कार्यालय जाकर सभी साथियों से सूचनाएं एकत्र करके एक डाटाबेस तैयार किया. फिर एक साथ ई-मेल, ब्‍लॉग और फेसबुक पेज के माध्‍यम से परस्‍पर संवाद के हर संभव चैनल खोल दिए. और आज मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि हमारा यह प्रयोग आशा से अधिक सफल रहा. बस इससे अन्‍य साथियों के जुडने की प्रतीक्षा है. इधर चुनाव की रणभेरी बजी और हम मैदान में थे. हमें किसी से सत्‍ता नहीं छीननी थी हमें सिर्फ अपने भविष्य की बागडोर अपने हाथों में लेनी थी. हमारे भाग्‍यविधाता वे लोग क्‍यों बनें जो अनुवादकों का दर्द तक न समझ सकते हों.
    
मैं जितना इस राजनी‍ति से दूर रहना चाहता था उतना ही परिस्थितियों ने इसका मुकाबला करने पर मजबूर किया. परंतु जब बहुत स्‍वस्‍थ और ईमानदार सोच वाले साथी मेरे चारों तरफ नज़र आए तो फ्रंट लाइन पर आकर काम करने का फैसला किया. दूसरे मेरा उत्‍साह श्री पांडेय राकेश श्रीवास्‍तव जी के संपर्क में आने से दूना हो गया. मैं पिछले दो वर्षों से पांडेय जी के संपर्क में हूं और यहां इतना ही कहूंगा कि उन जैसा प्रबुद्ध और साफ नीयत का आदमी इस कैडर का हिस्‍सा है यह कैडर का सौभाग्‍य है. हम दोनों ने न जाने कितनी शामें अनुवादकों की स्थिति में सुधार के उपायों पर चर्चा में खर्च की हैं. हम और हमारी टीम आज केवल ग्रेड पे और पदोन्‍नति के मुद्दों पर ही नहीं अटके हैं बल्कि इस पूरे परिदृश्‍य में परिवर्तन की वृहद स्‍तर पर संकल्‍पना कर चुके हैं. यहां लिखी बातें कुछ लोगों को हवाई लग सकती हैं. तो कहना चाहूंगा कि सपने हवा में ही बुने जाने हैं. यदि आप सपना नहीं देख सकते तो उसे साकार भी नहीं किया जा सकता. इसलिए सपने देखना जरूरी है और उससे भी जरूरी है उन सपनों को साकार करने के लिए जम कर काम करना.

ये और बात है कि जो लोग यह परिवर्तन नहीं देखना चाहते उन्‍होंने हर संभव तरीके से हमारे विरूद्ध दुष्‍प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी. पर हम इस सबसे विचलित नहीं हुए और निरंतर अपना काम करते रहे. मुझे आशा है कि इस तरह की साजिशें करने वाले लोग जल्‍द ही समझेंगे कि जहां सैकड़ों साथियों को भविष्‍य दांव पर लगा हो वहां अपने निजी स्‍वार्थ को तिलांजली देना ही श्रेयस्‍कर होता है. खैर इन्‍हीं सपनों को लेकर आज हम चुनाव के रूप में जनता की अदालत में हैं. आज हमारे साथियों को तय करना है कि वे इस टीम को पूर्ण समर्थन देकर इन सपनों को साकार करने में अपना योगदान देते हैं या इस टीम को कमजोर करके इन सपनों को खतरे में डालते हैं. मुझे विश्‍वास है कि मेरे अनुवादक साथी हमारे सांझा सपनों का विफल नहीं बनाएंगे. इस अदालत को जो भी फैसला होगा वो हमें तहे दिल से मंजूर होगा. 

- सौरभ आर्य, कनिष्‍ठ अनुवादक, वस्‍त्र मंत्रालय, उद्योग भवन. 

Sunday 15 July 2012

सहायक निदेशकों हेतु सविनय - अफवाह से बचें


सहायक निदेशकों हेतु सविनय
अफवाह से बचें

सक्रिय अनुवादकों की हमारी टीम ने जब चुनाव के लिए मुद्दे निर्धारित किए तो यह भी घोषित किया कि भविष्‍य में काम करने के सभी मु्द्दे व्‍यापक विचार विमर्श से निर्धारित किए जाएंगे. इसके लिए अपने चुनावी पैम्‍फलेट में हमने सभी अनुवादक साथियों से मुद्दे आमंत्रित किए हैं. हमारी टीम के समक्ष यह स्‍पष्‍ट है कि भविष्‍य में काम करने  के सभी मुद्दे मिलजुल कर बनाए जाएं जिससे कनिष्‍ठ अनुवादक से लेकर निदेशक (राजभाषा) तक के हितों में कोई अंतर्विरोध न हो. लेकिन, हमारी टीम के विरुद्ध दुष्‍प्रचार करने वाले एक गुट ने यह अफवाह फैलाई है कि हमारी टीम को सहायक निदेशकों के हितों की परवाह नहीं है. इस संदर्भ में हमारी टीम का यह वादा है कि –
1.      हम सहायक निदेशक के पद पर सीधी भर्ती का पुरजोर विरोध करेंगे. यदि नियमानुसार यह अपरिहार्य ही हुआ तो हम उसके लिए सीटों का प्रतिशत कम से कम रखने के लिए तथा शैक्षणिक योग्‍यता और अनुभव अनुवादकों के पक्ष में करवाने के लिए अंतिम सिरे तक जाकर संघर्ष करेंगे.
2.      हमारा प्रथम प्रयास यह होगा कि सीधी भर्ती की अवधारणा को समाप्‍त ही कर दिया जाए और उसके विकल्‍प के रूप में विभागीय परीक्षा को अपनाया जाए. प्रथम दो विभागीय परीक्षाओं में आयु सीमा में पर्याप्‍त छूट दी जाए.
3.      हम राजभाषा विभाग द्वारा पिछले वर्षों की सीधी भर्ती की सीटों को भरने के नाम पर तदर्थ सहायक निदेशकों को रिवर्ट करने के किसी भी प्रयास (जैसी की अफवाह फैलाई जा रही है) के विरुद्ध अंतिम सांस तक संघर्ष करेंगे.
4.      हम 1986 से राजभाषा संवर्ग में व्‍याप्‍त वेतन विसंगतियों को दूर करने के लिए भी प्रयास में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे.  

सहायक निदेशकों और अनुवादकों के हित समान ही हैं. अत: सहायक निदेशकों से अनुरोध है कि हमारे मिशन में सक्रिय सहयोग दें.

Saturday 14 July 2012

First deserve then desire....do not conspire.


 A man's own good breeding is the best guard against other people's ill-manners.


Vishakha Bisht
Jr. Translator
Ministry of Finance.
   Some people's narrow-minded and selfish attitude leading to their efforts to put off the forthcoming elections has forced me to  express my views on this. I am really perplexed and just wonder as to how can anybody stoop so low to get through his ill-motives.  some people have a propensity to put hindrances before anything good going to happen.  Such people live with their preconceived notions and keep cooking the stories up.

   My colleagues have already said a lot in respect of the ongoing movement and election but still I too wish to tell you folks  that whatever has happened till date in this regard...nothing was preplanned..it all happened eventually.  All of you know that  most of us specially the junior translators were kind of dissatisfied and disheartened with the workculture of the present association. The thought of election of a new association, who can rebuild and recondition our cadre's present predicament, was in everybody's mind for long but no one came ahead so far...so someone had to take up the gauntlet and it was a bunch of some active junior translators who assembled for the very first time on 9 may 2012 in the premises of North Block and discussed to put before the present association our demand of election.

    What I want to convey is that the people who had initiated this whole movement were solely interested in doing something for the betterment of our folks and not to get some post in the association.  On the contrary,  we wanted to keep ourselves aside from this politics as politics is generally not considered good for the honest people but we were convinced by our peers and friends to continue to lead this movement for some people, who had until not showed themselves up so far, came out all of a sudden wid their aspiration to get some key posts in the association.  This was the sole reason that we had to take the plunge and thus filed our nominations.  Otherwise such power-seeking, greedy people would have taken the charge into their hands and it would have altogether marred our very purpose i.e ensuring a better n brigtht future for the translators of this cadre.

  But when such people  were shown their way, they got rampant and started behaving pervertly.  they are going office to office with their pre-fabricated stories with no rationale and trying to convince our folks to put the elections off.  They have stooped to such a level that they have misused the names of some people without even taking their permission while making some representations to authorities. They have left no stone unturned to enfeeble our whole movement but little they know that this act of them has only boosted up our morale and we are energised to do work with more dedication now. Presumably, they are testing our endurance.  I have a message for such people that "first deserve then desire"

   Dear friends, we all know thzt our cadre's future is in a precarious stage so elections are of paramount nature as we are in urgent need of a new dynamic team of honest and sincere people who can take up the burning issues of  our cadre with the authorities.

  I, once again refute the allegations imposed on my teammates by some ill-advised people and would like to appeal to each n every translator of our cadre to not get distracted to such negativities and be united as unity is our strength. I also appeal to the entire translator fraternity to vote for Sh. Saurabh Arya and Sh. Pandey Rakesh Srivastava for the post of Joint Secretary on 17 July as without these two dynamic, hardworking and visionary people our association will be incomplete. 

ब्‍लॉग को संवाद का एक सशक्‍त माध्‍यम बनाने में हमारा सहयोग करें

प्रिय मित्रो,
इस ब्‍लॉग पर प्रतिदिन बढ़ते हिट्स बता रहे हैं कि यह ब्‍लॉग आपका प्रिय ब्‍लॉग बन चुका है. इसका अर्थ है कि जिस उद्देश्‍य के लिए हमने यह तंत्र विकसित किया था वह सफल हो रहा है. मुझे आशा है कि आने वाले समय में हमारे कैडर के और साथी इससे जुडेंगे. यह सार्वजनिक मंच है. यहां लिखे गए लेखों पर पाठकों को अपनी टिप्‍पणी करने का पूर्ण अधिकार है. 
अब तक यहां पाठकों को एनोनिमस पोस्‍ट के रूप में टिप्‍पणियां देने का अधिकार था. परंतु इस अज्ञात आयाम का दुरूपयोग करके कुछ लोगों ने पिछले दो दिनों में इस ब्‍लॉग को अपने मन का ज़हर उगलने को माध्‍यम बना डाला. श्री पांडेय राकेश श्रीवास्‍तव के लेख पर  कुंठा, हताशा और व्‍यक्गित छींटाकशी से भरी हुई एक एनोनिमस पोस्‍ट 


" THE ELECTIONS ARE NO BETTER THAN...........FUTURE LEADERS.." 

 जिसमें चुनाव लड रही टीम की भरसक आलोचना और भर्तस्‍ना की गई थी उसे हमने मोडरेटर धर्म का पालन करते हुए डिलीट नहीं किया और स्‍वागत किया ताकि ब्‍लॉग के पाठक हर पक्ष के विचार जान सकें. परंतु जब हमने पाया कि इस एक पोस्‍ट को जिसमें लिखने वाले का नाम और पहचान नहीं है उसे इस ब्‍लॉग की अब तक की लगभग हर पोस्‍ट के नीचे चार-चार बार और कुल पचासों बार पोस्‍ट किया गया है  हमें अपने संवाद के इस माध्‍यम के प्रबंधन पर अधिक ध्‍यान देने की आवश्‍यकता महसूस हुई. उपर के इस टिप्‍पणीकर्ता की यह  हरकत उसकी मानसिक स्थिति को दर्शाने के लिए पर्याप्‍त है. यह ब्‍लॉग मानसिक विकार का शिकार न बने इसके लिए मोडरेटर डेस्‍क ने  निर्णय लिया है कि ब्‍लॉग पर अब से हर पोस्‍ट/ कमेंट नाम और परिचय के साथ ही यहां प्रकाशित किया जाएगा. उपरोक्‍त टिप्‍पणी को एक स्‍थान पर छोड़कर अन्‍य सभी स्‍थानों से डिलीट कर दिया गया है. आप जो कुठ भी कहना चाहते हैं अपनी आइडेंटिटी के साथ खुलकर कहें, आपका स्‍वागत है और अपने कमेंट को एक बार ही पोस्‍ट करें. आप यहां खूब लिखें लेकिन कृपया गंदगी न फैलाएं. 

सभी कमेंट मोडरेटर डेस्‍क द्वारा मॉनीटर किए जाएंगे. कृपया एनोनिमस मोड का प्रयोग करते हुए भी अपना नाम और संक्षिप्‍त परिचय कमेंट के साथ अवश्‍य दें अन्‍यथा कमेंट प्रकाशित नहीं किया जाएगा. सभी सुधि पाठकों से अपेक्षा है कि इस ब्‍लॉग को संवाद का एक सशक्‍त माध्‍यम बनाने में हमारा सहयोग करेंगे. 

आपका अपना 

- मोडरेटर 

Wednesday 11 July 2012

श्री प्रेमचंद यादव का अविश्‍वास ही हमारा चुनावी संघर्ष




चूंकि हमारा मूल सिद्घांत चुनाव को स्वीकार करने वाला था इसलिए अंतत: एक चुनावी प्रतिद्वंदी के रूप में श्री प्रेमचंद की उपस्थिति स्वागत-योग्य है और उनके विरूद्घ हमारा संघर्ष हमारे प्रति उनका अविश्‍वास ही है कि लोग तय करें कि क्या हम वाकई विश्‍वास योग्य नहीं ?  

मेरे ब्लॉग पर श्री प्रेमचंद यादव की टिप्पणी स्वागत-योग्य है ।  स्वागत योग्य इसलिए कि श्री प्रेमचंद ने संवाद के महत्व को समझा।  यद्यपि श्री प्रेमचंद अब भी शायद बातों के भावों और विचारों से कनेक्ट नहीं हो पाए, और उन्हें मेरे लेख से लेकर हमारी टीम के निर्णयों में 'मानसिकताएं' नजर आईं।  

श्री प्रेमचंद ने कहा है कि उन्हें 'विद्रोही' और 'विषवमन करने वाला' कहा गया है।  यह गलत है।  मैं यह स्पष्‍ट करना चाहता हूं कि मेरे संबंधित ब्लॉग के लेख को वह अधिक ध्यान से पढ़ें तो पाएंगे कि 'विषवमन' करने वाला उन्हें नहीं कहा गया है। 'विषवमन' उन्हें कहा गया है जो चुनाव की प्रक्रिया में उतरकर अथवा अपने उम्मीदवार उतारकर या फिर किसी उम्मीदवार से अपने आप को जोड़कर अपनी बातें नहीं कह रहे हैं बल्कि पिछले दो महीने के इतिहास को तोड़ मरोड़कर पेश कर रहे हैं, 'टीम' को 'गुट' बता रहे हैं और इस बात को नहीं देख पा रहे हैं कि किस प्रकार जन संपर्क   के अभियानों और उस दौर में निर्मित पारस्परिकताओं से एक टीम का निर्माण हुआ।  मैं श्री प्रेमचंद को बताना चाहूंगा कि ऐसा विषवमन करने वाले अनेक लोग हैं, ऐसा हमारे अनुभव में आ रहा है जिनको लेकर हमारी चिंता स्वाभाविक है।  हमारी चिंता इसलिए है कि भविष्‍य में कैडर के लिए कामों को लेकर हमारी योजनाएं महत्वाकांक्षी हैं, और बड़़े कामों को अंजाम देने के लिए पूरे कैडर को टीम भावना में जोड़ना आवश्‍यक होगा और अगर आज कुछ लोगों में नकारात्मकताएं बो दी जाती हैं तो यह पौधे भविष्‍य में बाधक सिद्घ होंगे।  

मेरे लेख में श्री प्रेमचंद को 'विषवमन करने वाला' नहीं बल्कि 'स्वस्थ विरोधी' कहा गया है जिसके बारे में उन्होनें भी कहा है कि उन्हें 'प्रतिद्वंद्वी' कहा जाता तो अच्छा रहता।  प्रेमचंद जी का 'विरोध' 'जनता के दरबार' में उतर आया वह 'विष' नहीं है, भले 'सही' या 'गलत' हो ('सही' या 'गलत' पर अंतिम फैसला जनता दे देगी)।  'विष' वह बात है जो परदे के पीछे है, जो तथ्यों का तोड़ मरोड़ है या जो कम जानकारी या कम रूचि रखने वालों को दी जाने वाली अधकचरी सूचना है।  हां हमने इस बात की आशंका (मात्र आशंका) जरूर जताई है कि श्री प्रेमचंद विषवमन करने वालों के हाथों की कठपुतली न बनें।  यह आश्‍चर्यजनक है कि श्री प्रेमचंद ने मेरे लेख की ‘विषवमन  करने वालों' वाली बात से एसोसिएट क्यों किया, जबकि उसका संदर्भ स्पष्‍ट था।  

श्री प्रेमचंद ने पूछा है कि आखिर मैं किसका विद्रोही हूं कैडर का या उल्लिखित टीम का।  इस बिंदु पर मैं यह कहना चाहूंगा कि हमारी टीम इतनी गुस्ताख कतई नहीं है कि अपने आप को कैडर का पर्याय समझ लें जिससे अपने विरोधी को कैडर का विरोधी घोषित कर दे।  हां इतना निश्वित है कि हमारी टीम का श्री प्रेमचंद जी के साथ जो अनुभव हुआ उसमें 'आपसी समझदारी' को विकसित करने की हमारी टीम के लोगों की कोशिशों को उनके रवैये ने हमेशा ठेस पहुंचायी।  6 जून की आम सभा की बैठक में  उन्होनें  शिरकत की थी, और बैठक समाप्त हो जाने के बाद उन्होनें आक्रामक और अनादरपूर्ण तरीके से हमारी टीम के उन तरीकों की आलोचना की थी कि हमने बैठक में अपनी चुनाव आदि मांगों को मनवाने के लिए दबाव बनाने का रास्ता क्यों अख्तियार किया।  यह सच है कि हमारी टीम भी शोरगुल का हिस्सा बन गई थी पर श्री प्रेमचंद ने इन बातों के पीछे की मजबूरी और तर्क को ठहरकर जानने का प्रयास नहीं किया।  न ही इस बैठक से पूर्व के हमारे अभियानों और बैठक के लिए मुद्दों को आर्टिकुलेट करने के हमारे प्रयासों से वह किसी भी प्रकार से कनेक्ट थे।  उन्होंने यह नहीं समझा या समझना चाहा कि हमारी चिंता यह थी कि हमेशा की तरह पुरानी एसोसिएशन के पदाधिकारी अपनी उपलब्धियां गिनाने और बहुत काम बचे हुए हैं और पाइपलाइन में हैं इस बहाने चुनाव की बात को हवा न कर दें।  इसलिए हम सावधान थे।  हमारा शोरगुल चुनाव की घोषणा को छीनकर प्राप्त कर लेने की रणनीति के तहत था।  श्री प्रेमचंद ने पहली बार इस बैठक के समय ही हमारी टीम के प्रति बंद दृष्टिकोण का परिचय दिया था।

एक बार जब हमने चुनाव की घोषणा करवा ली तब हमारी पूरी गंभीरता चुनाव के प्रति थी।  इस बिंदु पर लोकतंत्र का तकाजा यह था कि हम अपनी टीम का आधार इतना बड़ा करें कि यह आदर्श स्थिति सामने आ जाए कि चुनाव की नौबत न आए।  दूसरे यह कि हमारी टीम चाहे जितनी बड़ी से बड़ी हो जाए ऐसे अनेक लोग हो सकते हैं कैडर पर जिनकी पकड़ हमसे बेहतर हो।  तो ऐसे लोगों को चुनाव के लिए प्रेरित किया जाए और हम जमकर चुनाव लड़ें।  ऐसे चुनाव से छनकर निकलकर आने वाले व्यक्ति कैडर के लिए समर्थ नेता होंगे।  इसमें से पहली बात यानि अपनी टीम का आधार बड़ा करने के खातिर हमने बैठकों के क्रम में 15 जून को जो पहली बैठक आयोजित की उसमें श्री प्रेमचंद आए पर किसी भी योगदान के लिए स्वयं को प्रस्तुत नहीं किया ।  यह हमारी टीम के प्रति श्री प्रेमचंद के बंद दृष्टिकोण का दूसरा परिचय था।  श्री प्रेमचंद ने हमारी टीम से कभी किसी स्तर पर कोई संपर्क नहीं स्थापित किया जबकि संपर्कों का लंबा सिलसिला हमने लंबे समय से चला रखा था।  

बहरहाल, हमारी टीम बनी और अनपेक्षित रूप से विभिन्न पदों पर हमारी टीम के सदस्‍यों के विरूद्ध चुनाव के लिए नाम सामने नहीं आए।  जो छिटपुट नाम सामने आए वह हमारी टीम में मिल गए।  केवल एक पद के लिए श्री प्रेमचंद का नाम सामने आया।  एक बड़ा चुनाव होता तो वह स्वागत योग्य होता।  चूंकि मात्र एक पद के लिए चुनाव बचा था इसलिए यह बात सामने आई कि श्री प्रेमचंद भी एकोमोडेट हो सकते हैं।  जब श्री प्रेमचंद से बातचीत के प्रयास हुए तो उनका रूझान पुन: अविश्‍वास से भरा था।  

चूंकि हमारा मूल सिद्घांत चुनाव को स्वीकार करने वाला था इसलिए अंतत: एक चुनावी प्रतिद्वंदी के रूप में श्री प्रेमचंद की उपस्थिति स्वागत-योग्य है और उनके विरूद्घ हमारा मुद्दा हमारे प्रति उनका अविश्‍वास ही है कि लोग तय करें कि क्या हम वाकई विश्‍वास योग्य नहीं हैं।  

श्री प्रेमचंद अपनी टिप्पणी में हमारी टीम को गुट कहने का लोभ पुन: संवरण नहीं कर पाए हैं।  उन्होनें कहा है कि 22-25 लोग एक साथ मिलकर संघ बना लें तो यह लोकतंत्र नहीं; हमारी प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष नहीं है; और व्यक्तिगत संपर्क में उन्होनें अनुवादकों को असंतुष्‍ट पाया कि अधिकांश अनुवादकों को कुछ पता नहीं है।  इस बिंदु पर मैं श्री प्रेमचंद को साग्रह यह कहना चाहूंगा कि उस कैडर में जहां वर्षों से काम कर रहे लोग एक दूसरे को बहुत कम जानते हैं वहां क्या यह अकस्मात है कि 22-25 लोग एकमत हो गए और एक टीम बन गई।  22-25 लोगों की संख्या कोई छोटी संख्या नहीं है और इतने लोग परस्पर मिलने जुलने से ही सामने आए।  क्या यह पारदर्शी और निष्पक्ष नहीं है कि कैडर में जो कभी न हुआ था वह हुआ कि लगभग दो महीने तक व्यक्तिगत संपर्क स्थापित करने का सघन अभियान चला और मुद्दों पर चर्चाएं चलीं।  पहल स्वाभाविक रूप से थोड़े से लोगों ने की तो इतने मात्र से किसी टीम को गुट नहीं कहते।  

मैं श्री अरूण कुमार राय के इस विश्‍वास को स्वीकार करता हूं कि श्री प्रेमचंद भी अंतत: कैडर के एक सिपाही ही हैं।  श्री प्रेमचंद अपने भीतर विद्यमान इस तत्व को भी देखें कि अपनी टिप्पणी में उन्होनें लिखा कि उनकी टिप्‍पणी पर लोग अपने विचार प्रस्तुत करें।  श्री प्रेमचंद में संवाद की सुगबुहाट आई।  उन्हें इस बात की भी चिंता है कि उनकी बात से किसी को ठेस न पहुंचे।  यह संपूर्ण माहौल में बनने वाली सकारात्मकता और लोकतांत्रिकता ही है कि हमारे प्रति श्री प्रेमचंद के अविश्‍वास में भी सेंध लग गया है।  व्यक्तिगत रूप से मैं चुनाव में खड़े होने के धर्म के नाते यह चाहता हूं कि मैं जीतूं पर उससे आगे यह मानता हूं कि चाहे कोई हारे या कोई जीते अंतत: सबकी ऊर्जा कैडर के हित में समायोजित हो।

इस बार का मुद्दा कैडर को बहुत जीवंत बना डालना है।  हमें संवाद करना है शोर नहीं।  विश्‍वास करना है, न कि अविश्‍वास और न ही अंधविश्‍वास और न ही किसी के विश्‍वास की जमीन पर अपनी चालाकियां।  सार्थक विरोध करना है, निरर्थक समर्थन नहीं। पर, यह भी समझ लेना है कि अनेक ऐसे प्रसंग होते हैं कि विरोध जताने की तुलना में स्वीकार जताने में कहीं अधिक सार्थकता, कहीं अधिक हिम्मत की जरूरत होती है।  (इस पैरा की बातें मैं सामान्य रूप से कह रहा हूं मात्र श्री प्रेमचंद के संदर्भ में नहीं। )

श्री प्रेमचंद ने ठीक कहा कि दलगत भावना से उपर उठें।  यहां पर मैं यह जोड़ना चाहूंगा कि हम सब टीमगत भावना को भी समझें।  अंतत: संपूर्ण कैडर को एक टीम बना डालना है।  

Thursday 5 July 2012

निर्वाचन अधिकारी द्वारा सही नामांकन पत्रों की सूची जारी...मतदान 17 को.

चुनाव कार्यक्रम के अनुसार नामांकन पत्रों की जांच के उपरांत आ‍ज निर्वाचन अधिकारी श्री सत्‍यपाल, सहायक निदेशक, आर्थिक कार्य विभाग द्वारा जारी पत्र के माध्‍यम से अम्‍मीदवारों की अंतिम सूची का प्रदर्शन किया गया है. इस पत्र की प्रति को सभी अनुवादक साथियों की सूचनार्थ ब्‍लॉग पर उपलब्‍ध कराया जा रहा है. 
- मोडरेटर 

विष नहीं विश्‍वास बोएं


यह बात समझना जरूरी है कि अनुवादकों का यह समूह एक टीम जरूर है पर यह गुट नहीं है। यह टीम कारवां बढ़ते जाने के क्रम में स्‍वाभाविक रूप से दूध से मक्‍खन निकलते जाने सरीखी प्रक्रिया से निकला है।



ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों स्‍तरों पर कुछ चर्चाएं मची हैं जिसमें कुछ confusion और कुछ negativity की बू है। पीछे जो अच्‍छा काम होता चला वह यह कि कुछ सक्रिय अनुवादकों द्वारा सभी अनुवादकों तक पहुंचने और परिवर्तन की दिशा में काम शुरू करने का आह्वान करने का घनघोर अभियान चला, इन सक्रिय अनुवादकों द्वारा एक दबाव समूह के रूप में पुराने एसोसिएशन को आम सभा की बैठक बुलाने के लिए मजबूर किया गया, अनुवादकों की आम बैठक हुई और सक्रिय अनुवादकों द्वारा उस बैठक में अधिकतम भागीदारी सुनिश्चित की गई चुनाव की घोषणा, सक्रिय अनुवादकों के समूह द्वारा कार्य करने के लिए इ्च्‍छुक अन्‍य अनुवादकों की तलाश की प्रक्रिया को और आगे बढ़ाना, बिखरे हुए और लगभग सोये हुए और बे‍हतरी की आशा छोड़ चुके लगभग निराश अनुवादकों के संवर्ग में परस्‍पर संचार और संवाद के चैनल गढ़ना, चुनाव की प्रक्रियाओं और प्रस्‍तावित एसोसिएशन के आगे चलकर पंजीकरण की शर्तों को पूरा करने हेतु प्रक्रियाओं को पूरा करना यह सब काम होता चला। लेकिन, यह अफसोसजनक है कि इन कामों के समानांतर कुछ अनुवादकों में confusion भी बनता रहा और कुछ लोगों द्वारा उस confusion का लाभ उठाकर negativity भी बोई जाती रही।

यूं तो मैं संयुक्‍त सचिव पद के लिए आधिकारिक उम्‍मीदवार हूं पर कुछ बातें मैं एक स्वतंत्र पर्यवेक्षक, एक गवाह के रूप में कहने का प्रयास कर रहा हूं। यह बात मैं शुरू से देखता रहा कि सक्रिय अनुवादकों के पूरे कार्य व्‍यापार में उनकी मंशाओं में प्राकृतिक न्‍याय के तकाजों, लोकतांत्रिक मूल्‍यों के तकाजों, नेतृत्‍व के सहज गुणों, जांबाजी और कठिन श्रम का ठीक ठीक वहन होता रहा है। ये लोग अच्‍छी मंशा के cementing force  से जुड़े हैं।

यह बात समझना जरूरी है कि अनुवादकों का यह समूह एक टीम जरूर है पर यह गुट नहीं है। यह टीम कारवां बढ़ते जाने के क्रम में स्‍वाभाविक रूप से दूध से मक्‍खन निकलते जाने सरीखी प्रक्रिया से निकला है। इस पूरे अभियान का ताना बाना अजय कुमार झा और दिनेश कुमार जैसे उन लोगों के इर्द गिर्द बुनता चला जिन्‍होंने अपनी नैतिक आभा बहुत लंबी कालावधि में अर्जित कर रखी थी। इन्‍हें बड़ी संख्‍या में विभिन्‍न कार्यालयों में काम करने वाले अनुवादक पहचानते थे कि इन्‍होंने कैडर के मुद्दों को आर्टिकुलेट करके उन पर across the cadre समर्थन जुटाने के लिए हमेशा काम किया था। इसलिए जब इन्‍होंने अभियान की कल्‍पना की और थोड़ा थोड़ा काम शुरू किया तो इनके भी अनुमान के इतर कारवां बहुत तेजी से बना। बदलाव की इच्‍छा दिलों में दबाए अनुवादकों की कामनाएं फूट पड़ी। फिर, एक व्‍यक्ति जो कैडर के लिए एक चमत्‍कार से कम नहीं उसका नाम है सौरभ आर्य’ । सौरभ ने अधुनातन तकनीकों का प्रयोग कर कर और दोस्‍ताना चुंबकीय स्‍वभाव की छटा बिखेर बिखेर across the cadre परस्‍पर संवाद का एक चलन शुरू कर रखा था। अजय कुमार झा और दिनेश कुमार की सुनिर्मित नैतिक आभा और सौरभ और उसके मित्रों की मेहनती जुगलबंदी एक सुखद संयोग के रूप में परस्‍पर मिल गए। निश्चित ही इस टीम में जो सुखद संयोग है वह स्‍वागत योग्‍य है, और उसे गुट का नाम देना संकीर्ण और न्‍यस्‍त स्‍वार्थों के हाथ में खेलना है। जिन लोगों के इर्द गिर्द अभियान एकत्र हुआ उन पर और उनके निर्णयों पर विश्‍वास अभी इस समय प्राकृतिक न्‍याय का एक तकाजा ही है। और जब मैं अभियान की बात करता हूं तो उसका अर्थ सिर्फ फेसबुक पर टिप्‍पणियां करना नहीं है बल्कि संवाद के माध्‍यम के रूप में नेट की संभावना का पूरा दोहन करने का नियमित पैटर्न बनाने के साथ साथ जमीनी स्‍तर पर सुविचारित नियमित सक्रियता दिखाना भी है।

एक और बात जो मुझे महत्‍वपूर्ण लगती है वह यह कि यह लोग जो एक टीम हैं वह टीम इसलिए हैं कि इन्‍होंने अभियान के क्रम में एक दूसरे को पहचाना है और एक-दूसरे की जिम्‍मेवारी लेने की कमोबेश स्थिति में हैं। अन्‍य लोग जो अभियान का हिस्‍सा नहीं थे और बाद में छोटे छोटे समूह बनाकर दबाव बनाकर अपने लोगों को इसी टीम में डालना चाहते थे उन्‍हें यह जानना चाहिए कि ऐसे लोगों की वैधता का आधार क्‍या होता और उनके सही-गलत होने की जिम्‍मेवारी किसकी होती। कहने का अर्थ यह नहीं है कि जो लोग टीम में नहीं आए उनकी कोई वैधता नहीं है या उनमें कोई योग्‍यता नहीं है। कहने का अर्थ सिर्फ यह है कि लोकतांत्रिक संस्‍कृति की नींव रखने का तकाजा यह है कि कुछ लोग उन सक्रिय अनुवादकों की वैधता का अपहरण कर अपने लिए भुनाने का प्रयास न करें जिन सक्रिय लोगों ने अपनी वैधता एक सघन अभियान और कुछ सुखद संयोगों से प्राप्‍त की है। यह उम्‍मीद थी कि अन्‍य लोग अपनी वैधता अपने समानांनर अभियानों, अपनी टीम बनाने और चुनाव में उतरकर जीतने का प्रयास करने के रूप में करते। यह उनकी ओर से एक लोकतांत्रिक कदम होता। पर यह नहीं हुआ। अगर आप कोई अभियान चलाने, टीम बनाने और चुनाव में खड़े होने में सक्षम नहीं हुए तो आपको कोई नैतिक हक नहीं है कि आप एक सुनिर्मित और सुविचारित टीम के विरूद्ध विषवमन करें। यह अच्‍छा है कि श्री प्रेमचंद चुनाव में खड़े हैं। इसलिए प्रेमचंद जी कई छिपे हुए विरोधियों की तुलना में एक स्‍वस्‍थ विरोधी हैं और स्‍वागत योग्‍य हैं। इन्‍हें चाहिए कि ये अपने लिए स्‍वस्‍थ प्रचार करें और अन्‍य विषवमन करने वालों के हाथ की कठपुतली न बनें। 
   
पूरे कैडर को चाहिए कि वह एक टीम के रूप में खड़े ऐतिहासिक सुखद संयोग के साथ अपनी उर्जा जोड़ दें और इस टीम को भी सबके विश्‍वास पर खरा उतरने के लिए स्‍वयं को दिलो दिमाग से तैयार कर लेना चाहिए।